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Sunday, March 20, 2011

दोस्ती का उपहार

दोस्ती का उपहार-1

मैं 22 साल का एक सावले रंग का लेकिन समार्ट दिखने वाला लड़का हूँ। मैं मूल रूप से कानपुर का रहने वाला हूँ लेकिन फिलहाल नोएडा में अकेला रह रहा हूँ। मेरे लण्ड की लम्बाई 7 इंच तथा मोटाई 3 इंच है। मेरा शरीर गठीला है क्योंकि कॉलेज के शुरूआती दिनों से ही मुझे कसरत का शौक रहा है।

मेरे मम्मी और डैडी का ट्रांसफर कानपुर से नोएडा हो गया था और मैं तबसे यहीं रह रहा हूँ। शायद ऊपर वाला मुझसे कुछ ज्यादा ही प्यार करता है या फिर मेरे भोलेपन का नाजायज फायदा उठाना चाहता है इसलिये बार-बार मेरे पास नई-नई कुंवारी लड़कियों को ही भेजता रहता है। ताकि मैं उन्हें चोदने के लिये परेशान होता रहूँ।

इस बार मुझे दूसरी कुंवारी चूत पूरे दो साल के बाद मिली। यहाँ आकर मेरा एडमिशन लड़कों के स्कूल में करा दिया गया जिससे स्कूल में किसी लड़की के पटने की संभावना ही खत्म हो गई और मेरे शर्मीलेपन की वजह से मैं और कोई लड़की पटाने में नाकामयाब रहा। हालांकि मैं एक बाद चुदाई कर चुका था लेकिन लड़कियों से बात करने में अभी भी शर्माता था, उन्हें पटाना तो बहुत दूर की बात थी। इसलिये फिलहाल मुठ मार कर ही गुजारा कर रहा था।

उस वक्त मैं इण्टर की परीक्षा दे चुका था और गर्मियों की छुट्टियों में कोई वोकेशनल जॉब की तलाश में था। तभी मुझे एक एन जी ओ ने अपने यहाँ ग्रामीण क्षेत्र में एरिया-सुपरवाईजर की पोस्ट पर रख लिया। क्योंकि मैंने कुछ खास पैसे की मांग नहीं की थी और सिर्फ मूड बदलने के लिये नौकरी करना चाह रहा था इसलिये मुझे आसानी से रख लिया गया। वह एन जी ओ ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों और महिलाओं को पढ़ाई के प्रति जागरूक करने के लिये अभियान चलाती थी। चूंकि वह एन जी ओ नई भर्ती कर रही थी इसलिये मुझे गाँवों में लड़कियों और महिलाओं को पढ़ाई के प्रति जागरूक करने के लिये लड़कों और लड़कियों की भर्ती करने का भी काम सौंप दिया गया। मुझे अपने नीचे 20 व्यक्ति रखने की इजाजत दी गई तथा उनकी पेमेन्ट भी मेरे द्वारा ही की जाती थी। यही मेरी जिन्दगी का सबसे खास मौका था जिसने मेरी पूरी जिन्दगी ही बदल दी और लड़कियों को पटाने और चोदने में महारत हासिल कराई।

नौकरी के पहले चरण में मुझे तीन गाँव दिये गये जिनमें मुझे लड़कियों और महिलाओं को पढ़ाई के जागरूक करना था। क्योंकि गाँव के लोग बाहर के लोगों पर जल्दी से भरोसा नहीं करते और फिर यह बात तो उनके घर की महिलाओं की थी। इसलिये वे और भी ज्यादा सावधानी बरत रहे थे। इसके लिये मैंने उन्हीं गाँव के लोगों को अपने नीचे भर्ती करने की सोची। इससे मेरा काम काफी आसान हो गया क्योंकि मुझे उन्हें बुलाना नहीं पड़ता था क्योंकि वो गाँव में ही रहते थे और गाँव के होने के कारण गाँव वाले उन पर भरोसा भी करते थे।

इस काम के लिये मैंने सबसे पहले गाँव के प्रधान को अपने कब्जे में लेना उचित समझा। इसलिये मैं नियमित सुबह-शाम गाँवों में प्रधान जी के पास जाकर बैठने लगा। जब उन्हें पता चला कि गाँव में महिलाओं की पढ़ाई के लिये अभियान चलाना चाहता हूँ तो उन्होंने मुझे सहयोग करने का पूरा आश्वासन दिया। वो मुझसे इस बात से भी प्रभावित हुए कि मैं अच्छे परिवार से सम्बन्ध रखता हूँ और इतनी कम उम्र में भी इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभाने के कोशिश कर रहा था।

मैंने उन्हे बताया कि मुझे अपने नीचे हर गाँव से 5-5 व्यक्ति(लड़की या औरत) रखनी पड़ेगी। जिन्हें मेरी ओर से हर महीने 1000 रूपए का भुगतान भी किया जायेगा। दोस्तो, आपको यह रकम बहुत कम लग रही होगी लेकिन यदि आप गाँवों में जाकर देखोगे तो आपको पता चलेगा कि गाँवों में बहुत सी गरीब लड़कियाँ और औरतें 30 रूपए रोज पर भी दूसरों के खेतो में काम करने जाती हैं। जबकि यह काम तो उनके लिये गाँवों में रहकर और बिना किसी टाईमटेबल के पैसे कमाने का मौका था। चूंकि यह काम इज्जत वाला और शिक्षा से सम्बन्धित था इसलिये गाँव के सभ्य लोग भी यह काम करना चाहते थे। उनके घरवालों को इस काम में कोई बुराई भी नजर नहीं आती थी क्योंकि उनकी लड़कियाँ और औरतें गाँव से बाहर नहीं जा रही थी।

शुरूआती दौर में मैंने कम लड़कियों को अपने साथ काम पर रखना ही बेहतर समझा क्योंकि गाँव का माहौल था और छोटी सी गलती भी बहुत खतरनाक साबित हो सकती थी। इसलिये मैंने हर तीन औरतों के साथ एक लड़की को ही रखा। हर गाँव में मैं एक आदमी को भी रखता था जिससे मुझे किसी को गाँव से बाहर भेजना पड़े तो किसी लड़की या औरत को ना भेजना पड़े। मेरे इस काम से गाँव के प्रधान बहुत खुश हुए और मुझ पर काफी भरोसा करने लगे थे और मुझे अपने यहाँ शादी-ब्याह के कार्यक्रमों में बुलाने भी लगे थें। वहाँ मेरा बहुत सम्मान किया जाता जिससे गाँवों मे मेरी काफी इज्जत होने लगी थी। कुछ मेरी काम करने की शैली भी काफी अच्छी थी, मैं गाँव की औरतों के साथ ही बैठ जाता, वहीं उनके साथ बातें करता और पढ़ाई के लिये जागरूक भी करता। और ज्यादातर दोपहर का खाना भी उनके साथ उनके घर के बने दही और छाछ के साथ करता। इससे उन लोगों को मैं बिल्कुल भी गाँव के बाहर का रहने वाला न लगता।

अब मेरी नजरों में धीरे-धीरे कुछ गाँवों की सुन्दर लड़कियाँ चढ़ने लगी थी और मैं उन्हें चोदने की योजना बनाने लगा। इसके लिये मैंने अपनी महिला कार्यकर्ताओं से ही उन्हें अपने साथ लगाने को कहा। इससे किसी को मुझ पर शक नहीं हुआ।

मुझे काम करते हुए 5-6 महीने बीत चुके थे। मैं गाँव के कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देने के लिये गाँव के ही पंचायत घरों पर ले जाता था। जिन गाँवों में पंचायत घर की व्यवस्था नहीं होती थी उन गाँवों के कार्यकर्ताओ की ट्रेनिंग बाहर किसी बारात घर वगैरह में कराता था। इसलिये मुझे कई बार कुछ लड़कियों और औरतो को अपनी मोटर साईकिल पर बिठाकर ले जाना भी पड़ता था। इससे भी गाँव वाले मेरे साथ किसी लड़की को देखकर शक नहीं करते थे।

मेरी टीम में एक नीतू नाम की नई लड़की अपनी माँ की जगह काम करने आई। हालांकि मैंने पहले उसे ही अपनी टीम में लेने की कोशिश की थी लेकिन उसकी माँ ने उसे काम करने से मना कर दिया। लेकिन मैंने हिम्मत न हारते हुये उसकी माँ को ही अपनी टीम लगा लिया। इस उम्मीद में कभी न कभी तो उसे अपने साथ लेकर आयेगी ही और इसी बहाने से मुझे उसके घर जाने का मौका मिलने लगा था।

मैंने उससे पूछा- तुम्हारी माता जी कहाँ हैं?

तो उसने कहा- उनकी तबीयत सही नहीं है इसलिये उन्होंने मुझे काम करने के लिये भेजा है।

मैंने उसे कुछ जरूरी बातें समझाई और दो औरतों के साथ उसे गाँव में भेज दिया और ठीक तीन घंटे बाद दोपहर के समय पंचायत घर पर आने के लिये कहा। दोपहर के समय पंचायत घर पर कोई नहीं होता था और गाँव के सभी लोग खेतो से लौटकर खाना वगैरह खाने के बाद सोने लगते थे। क्योंकि 2 बजे से 4 बजे तक गाँवों में सभी किसान आराम करते हैं। उस वक्त धूप तेज होती है और भूख भी बड़े जोर की लगी होती है।

मैंने सबको खाना खाकर आने के लिये कह दिया। क्योंकि आज उसका पहला दिन था इसलिये उसे कुछ जरूरी बातें समझाने के लिये वहीं रोक लिया। मैं ऐसा हमेशा करता था और अपने नये कार्यकर्ता पर बहुत ध्यान देता था इसलिये सबने इसे सामान्य ही समझा। अब दो घंटे तक वो और मैं गाँव की पंचायत पर अकेले थे। लेकिन गाँव में यह सब करना बहुत खतरनाक होता है इसलिये हम लोग बैठक पर ही बैठे रहे और कोई भी ऐसी-वैसी हरकत करने की कोशिश नहीं की। वैसे भी यह उसकी और मेरी पहली मुलाकात थी। हालांकि हम लोग घर पर कई बार एक दूसरे से मिल चुके थे लेकिन बात-चीत उस दिन ही हुई थी।

मैंने धीरे-धीरे उसे घुलना-मिलना शुरू किया, जैसे वो कौन सी कक्षा में पढ़ती है, उसकी कौन सहेली है उसे क्या पसन्द है वगैरह-वगैरह।

शुरू में तो वो काफी शरमाई लेकिन फिर धीर-धीरे वो सामान्य हो गई और मुझसे हंसी मजाक भी करने लगी।

दोस्तो, आपको बता दूँ कि 6 महीने नये-नये लोगों से बातचीत करने के कारण और उन्हें समझाने के कारण मेरी झिझक अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी और मुझे किसी से बात करने में कोई परेशानी महसूस नहीं होती थी। मैं अपनी खास स्टाईल से लोगो से जल्दी ही घुल-मिल जाता। मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ मुझमें कुछ खास बात है जिससे अगर कोई एक बार मुझसे मिल ले या बात कर ले तो फिर मुझसे दूर नहीं हो पाता है।

अब मैं जल्दी ही उसे पटाने के तरीके ढूंढने लगा। लेकिन शायद मेरी किस्मत बहुत तेज थी। वो मुझे पसन्द करने लगी थी और नये-नये तरीके से मेरी साथ कोई न कोई शरारत करती रहती थी। कभी मेरी बाईक की चाबी छुपा देती तो कभी मेरी फाईल छुपा कर रख देती।

एक दिन मैंने देखा कि सुबह से ही मौसम कुछ खराब सा हो रहा था। मुझे अन्दाजा हो गया कि जल्द ही बारिश होने वाली है। इसलिये मैं जल्दी से अपना सारा काम निपटा कर उसके पास पहुँचने के कोशिश करने लगा। लगभग 1 घंटे के बाद ही मैं अपना सारा जरूरी काम निपटा कर उसके पास पहुँच गया। क्योंकि मैं अब उसे चोदने के चक्कर में था इसलिये मैनें उसके साथ अपने भरोसे के दो लड़के लगाये हुये थे जिससे उसे कम से कम मेहनत करनी पड़े और काम भी हो जाए। और यदि मौका मिले तो मैं उसे कहीं चोदने भी ले जा सकूं। क्योंकि अगर कोई लड़की या औरत साथ होती तो वो उसे छोड़कर नहीं जाती।

जल्दी ही मेरी उम्मीद के अनुसार मौसम खराब हो गया और तेज बारिश शुरू हो गई। बारिश से बचने के लिये हम गाँव के एक खाली पड़े घेर में घुस गये।

इतने में दोनों लड़के कहने लगे- सर जी भूख लग रही है।

तो मैंने उनसे पूछा- क्या खाओगे?

सबने एक साथ सहमति में कहा- समोसे।

दोस्तो, बारिश में समोसे खाने का मजा ही कुछ और है और जब भी मौका मिलता मैं अपनी टीम के लोगों को कुछ न कुछ खिलाता रहता।

मैंने उनसे कहा- बारिश हो रही है, लेने कौन जायेगा?

तो दोनों लड़के कहने लगे- सर, आप टेंशन मत लो ! हम ले आयेंगे और थोड़ी देर बारिश में नहा भी लेंगे।

मैं मन ही मन खुश होने लगा कि मैं तो इन्हें ही कहीं भेजने की फिराक में था और ये खुद ही कहने लगे।

मैंने मौका न गंवाते हुये उन्हें पचास रूपये देकर समोसे लेने भेज दिया और कहा- देखो, आराम से आना। कहीं जल्दी के चक्कर में समोसे मत खराब कर देना।

ठीक है ! कह कर दोनों चल दिये।

समोसे की दुकान गाँव से बाहर बाजार की ओर थी और उन्हे वहाँ से समोसे लेकर आने तक कम से कम डेढ़ घंटा लगना था। मैं खुश हो गया और मन ही मन कहने लगा कि आज तो इसे चोद कर ही रहूँगा।

उनके जाते ही मैंने उससे प्यारी-प्यारी बात करनी शुरू कर दी। पर पता नहीं क्यों आज वो मुझसे ठीक से बात नहीं कर रही थी शायद उसे भी मेरी नीयत पर शक हो गया था। मेरे काफी कोशिश करने के बाद भी जब मैं कोई काम की बात नहीं कर पाया तो मेरा मूड खराब हो गया और मैं अपनी फाईल पलटने लगा। तभी मुझे अपनी फाईल के पीछे आई लव यू लिखा हुआ दिखाई दिया। मैं समझ गया कि ये उसने अभी ही लिखा है। लेकिन दोस्तो, आपको बता दूँ कि गाँव की लड़कियों के मजाक को अगर आपने सीरियस समझ लिया तो हो सकता है कि आप अगले दिन खाट से उठने के लायक न रहें। इसलिये दोस्तो, जब तक लड़की आप को पूरा सिगनल न दे दे, उसे चोदने की या जबरदस्ती करने की कभी कोशिश न करें। इसलिये मैं अब उसके मुँह से ही आई लव यू कहलवाने के चक्कर में लग गया क्योंकि आज तक हमारे बीच में हंसी-मजाक तो चलता था लेकिन कभी इससे आगे बात नहीं बढ़ी इसलिये उससे इस सबकी उम्मीद भी कम ही थी। गाँव की लड़की अगर एक बार अपने मुँह से आपको आई लव यू कह दे तो समझ लीजिये अब आपको कुछ कहने की जरूरत नहीं है और वो आपको किसी चीज के लिये मना नहीं करेगी।

अब मैं उससे बात करने की कोशिश करने लगा कि किसी तरह उसके मुँह से आई लव यू कहलवा दूँ। लेकिन वो अपने मुँह से आई लव यू कहने को तैयार ही नहीं हुई।

मैंने उससे पूछा- बताओ, तुमने यह क्यों लिखा?

तो उसने कहा- बस मैंने ऐसे ही लिख दिया।

मैंने फिर से कोशिश की- अच्छा बताओ कि ये तुमने किसके लिये लिखा है।

तो उसने कहा- मेरे एक भैया है जो मेरे घर के सामने रहते हैं, यह मैंने उनके लिये लिखा है।

मेरे तो जैसे किसी ने सारे अरमानों को ही कुचल दिया। उसके बाद मैंने उससे कोई बात नहीं की। थोड़ी देर बाद दोनों लड़के समोसे लेकर आ गये।हम लोगों ने समोसे खाये और बारिश बन्द होती देख गाँव की चौपाल की तरफ चल दिये। लेकिन बारिश होने के कारण चारों तरफ पानी भर गया था और गाँव के कच्चे रास्तों पर इस हालत में मोटरसाइकिल चलाना खतरनाक था। इसलिये मैंने मोटरसाइकिल गाँव में एक घर के बाहर खड़ी कर दी और पैदल ही उनके साथ चलने लगा।

हम चार लोग थे और साईकिल केवल एक थी इसलिये दोनों लड़के कहने लगे कि सर आप हमें अपना सामान दे दीजिये हम सामान चौपाल पर रखते हुये साईकिल से घर चले जायेगें। नहीं तो पैदल चलते-चलते बहुत समय लगेगा।

मैंने कहा- ठीक है, तुम दोनों चले जाओ। मैं पैदल नीतू को साथ लेकर आ रहा हूँ।

रास्ते में एक जगह गढढे में पानी भरा हुआ था, मैं तो एक छलांग मार कर पार निकल गया लेकिन नीतू उस पार ही रह गई और कहने लगी- सर, मैं कैसी आँऊगी?

मैंने कहा- जैसे मैं आया हूँ वैसे ही तू भी कूद कर आ जा।

नहीं सर, मैं पानी में गिर जाँऊगी।

मैंने कहा- मैं इस तरफ खड़ा हूँ कूद कर आ जा।

जैसे ही उसने छलांग लगाई उसका पैर पानी के किनारे पर पड़ा और उसने गिरने से बचने के लिये एकदम मुझे अपनी बांहो में ले लिया। पहले तो मैंने इसे सामान्य बात समझा लेकिन फिर मुझे लगा कि शायद यह उसने जानबूझ कर कर किया है। लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा और धीरे-धीरे चलने लगा। उसके बाद वो मेरा हाथ पकड़कर चलने लगी। क्योंकि हम एक पगडंडी पर चल रहे थे और दोनों और घने खेत थे इसलिये हमें कोई देख नहीं सकता था। लेकिन तभी मैंने कुछ सोच कर अपना हाथ उससे छुड़ा लिया।

तो वो कहने लगी- सर, नाराज हो गये क्या?

नहीं ! मैं भला क्यों नाराज होने लगा।

तो फिर बात कीजिये ना सर - उसने कहा।

मैं समझ गया कि अब वो क्या चाहती है, मैंने देर ना करते हुये फौरन उससे कहा- नीतू, मैं तुम्हे बहुत पसन्द करता हूँ और तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुम्हारा क्या जबाब है?

तो उसने कहा- सर, मुझे सोचने का समय दीजिये।

मैंने कहा- हाँ, यह बहुत बडी बात है और इसका जबाब तो सोच-समझ कर ही देना चाहिये मैं तुम्हें पूरे एक सैकिण्ड का समय देता हूँ अच्छी तरह सोच कर बता दो।

मेरी इस बात पर वो हँसने लगी और हाँ कह दिया।

मैंने उससे पूछा- तुमने पहले घर के सामने वाले भैया का नाम क्यों लिया।

उसने कहा- मेरे घर के सामने कोई भैया नहीं रहते है वो तो मैंने ऐसे ही झूठ बोला था।

अब मैंने काम की बात करने की सोची। लेकिन दोस्तो आपको बता दूँ जब आप किसी लड़की को प्रपोज करें और वो आपको हाँ कह दें उससे फौरन ही चुदाई की बात न करें। उसे धीरे-धीरे उकसाये ताकि वो अपनी मर्जी से खुद ही अपने आपको सौंप दे।

मैंने उससे कहा- आज हमारी दोस्ती का पहला दिन है क्या तुम आज मुझे कोई गिफ्ट नहीं दोगी।

तो उसने नादानी में कहा- सर, मैं आपको क्या दूँ मेरे पास तो आज कुछ भी नहीं है।

मैंने मतलब भरी नजरों से उसकी ओर देखकर कहा कि मुझे जो चाहिये वो तुम्हारे पास इस समय भी है।

मेरी बातों का मतलब समझ कर उसने शरारत भरी नजरों से मेरी ओर देखकर मेरी पीठ पर हल्के से हाथ मारा।

मैंने कहा- क्या हुआ? हाँ या ना में जबाब दो।

तो उसने कहा- क्या चाहिये।

मैंने कहा- ज्यादा कुछ नहीं, बस एक चुम्मा दे दो।

दोस्तो आप सोच रहे होंगे कि मैं कितना बेवकूफ हूँ लड़की मेरे सामने है और मैं सिर्फ एक चुम्मा मांग रहा हूँ। लेकिन एक बात आप भी जान लीजिये कि अगर एक बार लड़की ने आपको हाथ लगाने की इजाजत दे दी तो वो आपको चाहते हुए भी किसी चीज के लिये मना नहीं कर सकती। इसलिये मैं पहले उससे चुम्मा ही मांगता हूँ और फिर उसके बाद उसे चूमते हुए इतना गर्म कर देता हूँ कि वो खुद ही आगे बढ़ जाती है। जब किसी लड़की की सील तोड़नी हो तो जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये। क्योंकि लड़की चाहे कितनी भी नादान क्यों ना हो अपनी बड़ी सहेलियों या जो पहले चुदवा चुकी होती हैं, उनसे पता चल ही जाता है कि जब कुंवारी चूत की सील टूटती है तो बहुत दर्द होता है और खून भी निकलता है। इसी डर की वजह से लड़कियाँ चाहते हुये भी चुदवाने से घबराती हैं। लेकिन जब उन्हें कोई लड़का बहुत गर्म कर देता है और उनकी चूत में आग लगने लगती है तो वह किसी चीज की परवाह नहीं करती है और बस यही चाहती है कि कोई मोटा लण्ड उनकी चूत को फाड़ कर रख दें। चाहे इसमें कितना भी दर्द क्यों न हो।

थोड़ा शरमाते हुये उसने चुम्बन के लिये हाँ कह दी। लेकिन तब तक हम घने खेतों से निकल कर गाँव के सामने आ चुके थे। इसलिये उसने कहा- यहाँ पर तो लोग हमें देख लेंगे।

मैंने कहा- घबराओ मत, मैं तुम्हारी चुम्मी यहाँ पर नहीं लूँगा।

मैं भी किसी एकान्त जगह की तलाश में था, चुम्बन का तो बहाना था मुझे भी तो उसकी चूत ही मारनी थी। इसलिये मैंने उससे कहा- तुम ही बताओ कहा दोगी?

उसने कहा- कल दोपहर में जब सब अपने घर खाना खाने के लिये जायेगे उस वक्त।

उस रात मुझे नींद नहीं आई क्योंकि अगले दिन एक नई कुंवारी चूत चुदने के लिये मेरा इन्तजार कर रही थी। अब मैं दोपहर का इन्तजार करने लगा।

दोस्ती का उपहार-2

दोपहर बाद जब सब खाना खाने के लिये जाने लगे तो मैंने उसे छेड़ने के लिये कहा- तुम्हें कुछ याद है नीतू?

उसने कहा- क्या सर?

मैंने कहा- कल तुमने मुझे कुछ देने के लिये कहा था !

तो उसने नादान बनते हुये मुझे छेड़ते हुए कहने लगी- मुझे तो कुछ भी याद नहीं है ! और फिर रात गई बात गई।

क्योंकि अभी एक दो औरतें बैठी थी इसलिए मैंने ज्यादा बात करना ठीक नहीं समझा और उनके जाने का इन्तजार करने लगा। थोड़ी देर बाद बाकी औरते भी जाने के लिये कहने लगी तो मैंने उन्हें भी जाने के लिये कह दिया। जब देखा आस-पास अब कोई नहीं है तो मैंने उसे कमरे में अन्दर चलने के लिये कहा। हम लोग पंचायत घर के बरामदे में बैठते थे और धूप हो जाने पर अन्दर कमरे में चले जाते थे। उसने कोई विरोध नहीं किया और अन्दर कमरे में बिछी चटाई पर मेरे बगल में आकर बैठ गई और अपना सिर मेरे कन्धे पर टिका लिया।

मैं समझ गया कि वो तैयार है और समझ गई कि मैं क्या करना चाह रहा हूँ। लेकिन मैं उसके मुँह से ही सुनना चाहता था इसलिये मैंने फिर उससे कहा- अब तैयार हो?

तो उसने कुछ नहीं कहा और शर्म से अपनी आंखे नीचे की और झुका ली।

मैंने शरारत से कहा- अगर तुम किस नहीं देना चाहती हो तो कोई बात नहीं, मैं फिर कभी तुम्हारी चुम्मी ले लूंगा।

तो उसने अचानक चौंक कर कहा- मैंने कब मना किया।

मैंने सोचा कि अब इसे ज्यादा तड़पाना ठीक नहीं है और उसे दरवाजे की ओट में ले गया और उसके गालो पर धीरे-धीर चूमना शुरू कर दिया। जब थोडी देर उसे चूमने के बाद उसकी थोड़ी झिझक खत्म हो गई तो मैं कमीज़ के ऊपर से ही उसकी चूचियों को दबाने लगा तो उसने कहा- यह मत करो।

मैंने कहा- क्यों?

नहीं, बस गुदगुदी होती है, पहली बार किसी ने इन्हें हाथ लगाया है। शायद इसीलिये ! उसने कहा।

लेकिन शायद उसे कुछ ज्यादा ही गुदगुदी हो रही थी इसलिये वो अपनी चूचियों को दबाने ही नहीं दे रही थी। बार-बार मेरा हाथ अपने हाथ से हटा रही थी। और मुझे बिल्कुल भी मजा नहीं आ रहा था। मैंने सोचा पहले जो मिल रहा हूँ उसके मजे ले लूँ, इन्हें बाद में भी दबा लूंगा।

मैंने अब उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया। थोड़ी देर तक उसके होंठों को चूसने के बाद वो थोड़ा-थोड़ा गर्म होने लगी। तो मैं अब नीचे सरकने लगा। मैंने उसके गले और सीने पर चूमना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे सूट के ऊपर से ही उसकी खुली चूचियो को चूमने लगा। साथ ही हाथ से उसकी चूचियों को भी बीच बीच में दबाता रहा। लेकिन वो अपनी चूचियो को पूरी तरह से दबाने नहीं दे रही थी। जिससे मुझे एक प्रकार की कमी सी लग रही थी जैसे कुछ अधूरा सा रह गया है।

मैंने फिर अपनी अकल लड़ाई। मैंने उसके दोनों हाथ अपनी कमर पर से हटाकर उन्हें ऊपर उठाकर दीवार के सहारे टिकाने को कहा और उसका सूट धीरे-धीर ऊपर उठाने लगा। उसने अन्दर कुछ नहीं पहना था ना ही समीज और न ही ब्रा। उसकी संतरे जैसी मोटी और पहाड़ जैसी खडी चूचियाँ देखकर पता नहीं मुझे क्या हुआ अचानक मैंने उन्हें अपने मुँह में ले लिया। चूची चूसने का यह पहला ही अनुभव था और मुझे पता भी नहीं था कि चूची को किस तरह से चूसना चाहिये। लेकिन शायद सब ठीक ही कहते है कि ये चीजें सिखाने की जरूरत नहीं होती। मैं उसकी चूची मुँह में लेकर उसके चने के दानों के समान छोटे-छोटे चुचूकों को अपनी जीभ से सहलाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी दूसरी चूची दबाने लगा। जिससे उसे एक अजीब सी मस्ती चढ़ने लगी। पिछले आधे घंटे में उसने पहली बार मेरा चूची दबाने पर विरोध नहीं किया था। उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़कर अपने दोनों चूचियों पर इतने जोर से दबाया कि एक बार तो मैं सांस भी नहीं ले पाया।

उसे मस्ती चढ़ने लगी थी इसलिये मैंने खड़े होकर उसका कमीज़ उतार दिया। उसके बाद उसकी सलवार का नाड़ा खोलने लगा। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया लेकिन फिर ना जाने क्या सोच कर छोड़ दिया और कोई विरोध नहीं किया। मैंने उसकी सलवार उतारी और उसके चूतड़ों को खूब कस कर दबाने लगा। उसके चूतड़ एकदम गोल और सख्त थे। मेरा लण्ड अब तक पूरी तरह से खड़ा हो चुका था और पैण्ट की चेन पर दस्तक दे रहा था। मैंने अपना लण्ड पैंट के ऊपर से ही उसके हाथ में पकडाया। लेकिन उसने अचानक ही उसे छोड़ दिया और कहने लगी- यह तो बहुत तेज हिल रहा है।

मैंने कहा- इसकी एक मनपसन्द चीज तुम्हारे पास है इसलिये ये खुशी से उछल रहा है।

वो समझ गई कि मेरा इशारा उसकी चूत की तरफ है और वो शरमा कर हंसने लगी।

अब मैंने भी अपने कपड़े उतार दिये और सिर्फ अण्डरवियर में रह गया। दोपहर के तीन बजे होने के कारण किसी के वहाँ आने की कोई सभांवना नहीं थी। इसलिये मैंने दरवाजा बन्द नहीं किया वरना लोगों को शक हो सकता था। मैंने उसे वहीं चटाई पर लिटा दिया और उसकी चूत के दर्शन करने लगां। उसकी चूत एक दम चिकनी थी जिस पर छोटे-छोटे से रोंये ही निकले थे। जिन पर हाथ फिराने में बहुत ही मजा आ रहा था।

उसकी चूत एकदम गीली हो चुकी थी। मैंने अपना अण्डरवियर उतार कर एक उसके चूतड़ों के नीचे रख दिया कि कहीं उसकी सील टूटने से खून निकले तो चटाई न खराब हो जाय और सबको पता चल जाय कि यहाँ क्या हुआ था।

मेरा लण्ड देखते ही वो बोली- सर आपका यह तो बहुत बड़ा और मोटा है मेरी छोटी सी इसमें तो घुसेगा ही नहीं।

मैंने कहा- देखती रहो, यह अपने आप इसमें घुस जायेगा। तुम बस चुपचाप लेटी रहो।

मैंने उसकी चूत के छेद पर अपने लण्ड को टिकाया लेकिन झटका नहीं मारा। वरना आस-पास कोई ना कोई उसकी चीख सुन सकता था। मैं उसके ऊपर सीधा लेट गया और दोनों हाथों से उसका चेहरा सीधा किया और उसके होठों को कसकर अपने होठों में दबाकर चूसने लगा। जब मैंने देखा कि उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया है तो पूरा जोर लगाकर एक जोर का झटका दिया और लण्ड एकदम से 2 इंच तक उसकी चूत में घुस गया। वो दर्द से बिलबिलाने लगी लेकिन उसके होंठ मेरे होंठों के कब्जे में होने के कारण उसके मुँह से उसकी चीख नहीं निकली। मैंने एकदम से दो झटके और मारे और अपना पूरा 7 इंच का लण्ड उसकी चूत में जड़ तक उतार दिया।

उसने मुझे अपने ऊपर से हटाने की पूरी कोशिश की लेकिन मुझे इस बात की उम्मीद थी इसलिये मैंने उसके कंधों को अपने हाथों से पकड़ रखा था। मैंने एक हाथ से उसकी चूची को दबाना शुरू कर दिया और तब तक दबाता रहा जब तक उसका चूत में हो रहे दर्द से तड़पना रूक नहीं गया। फिर मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए।

5 मिनट बाद ही उसकी चूत का दर्द खत्म हो गया और मुझे कमर से पकड़ कर अपनी अन्दर समेटने की कोशिश करने लगी। मैं समझ गया कि अब वो पूरे जोश में है इसलिये मैंने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी और पूछा- कैसा लग रहा है?

तो उसने कहा- पता नहीं कैसा लग रहा है, पर अच्छा लग रहा है !

और अपनी आंखें बन्द कर ली।

मैंने भी पूरे जोश के साथ उसे चोदना जारी रखा। 5-7 मिन्ट बाद मैं झड़ गया इस बीच वो एक बार झड़ी चुकी थी और दूसरी बार मेरे साथ झड़ गई।

मैं जल्दी से उसके ऊपर से उठा और उससे पूछा- तुम ठीक हो? अपने घर जा सकती हो?

गाँव की लड़कियों की बात ही कुछ और होती है। वो फौरन उठकर खड़ी हो गई और अपने कपड़े पहनने लगी। पर उसके चलने में कुछ लंगडाहट थी। अब मेरी नजर अपने अण्डरवियर पर पडी जो बीच में खून से गीला हो गया था। मैंने अपने अण्डरवियर को उठाकर खिडकी से बाहर फेंक दिया और अपने बाकी के कपड़े पहनने लगा। उसके चेहरे पर थकान के निशान दिखाई देने लगे थे। मैंने सोचा इसे जल्दी से घर भेज देना चाहिये। क्योंकि अभी चुदाई के मजे में दर्द कम महसूस हो रहा है, थोड़ी देर बार जब चुदाई का नशा उतरेगा तो चला भी नहीं जायेगा। इसलिये मैंने उसे घर जाने के लिये कह दिया। उसके जाते ही मैंने चैन की सांस ली। चलो मामला कहीं से भी नहीं बिगड़ा वरना मजे के चक्कर में मैंने इधर-उधर देखा भी नहीं कि कहीं कोई हमे देख तो नहीं रहा।

लेकिन जैसे ही मैं लेट रहा था कि पंचायत घर के पीछे वाले घर में रहने वाली कजरी नामक की एक औरत आ गई। वैसे तो मैं उसे आंटी ही कहता था लेकिन मुझे पता नहीं था कि उसकी नीयत मुझ पर पहले से ही खराब थी। वैसे देखने में वो कुछ बुरी भी नहीं थी। 23-24 साल की भरे शरीर की औरत थी लेकिन गाँव की लड़कियों की शादी तो 16-17 साल की उम्र में ही कर दी जाती है। इसलिये उसके तीन बच्चे हो चुके थे। बडे बच्चे की उम्र लगभग 5-6 साल के बीच थी। उनका पति ट्रक चलाता था और 2-3 महीने में ही घर आता था।

मैं जब भी उसे आंटी कहता तो वो मुझे टोक देती- मुझे आंटी मत कहा करो, मुझे भाभी कहा करो।

लेकिन क्योंकि मैं शहर में ही रहता था और अभी जल्दी ही इण्टर के एग्जाम दिये थे और मेरी उम्र भी कम ही थी इसलिये हर शादीशुदा औरत को आंटी ही कहता था।

मैंने पूछा- आंटी आप यहाँ कैसे? और इस वक्त?

उसने इतराते हुये कहा- मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि मुझे आंटी नहीं भाभी कहा करो।

मैंने कहा- ठीक है आंटी, मेरा मतलब भाभी।

और वो मेरे पास ही चटाई पर आकर बैठ गई। उन्होने मुझसे पूछा- नीतू को क्या हुआ?

मैं एकदम उनकी तरफ देखने लगा लेकिन वो धीर-धीरे शैतानी हंसी हंस रही थी।

मैंने कहा- कुछ नहीं ! क्यों?

नहीं वो लंगड़ाकर चल रही थी और बहुत थकी हुई सी लग रही थी।

मैंने कहा- हाँ वो गडढे में फिसल गई थी शायद तभी उसके चोट में लग गई होगी। इसलिये मैंने उसे घर भेज दिया।

वह हंसते हुए बोली- तुम्हें नहीं पता उसे क्या हुआ। मैं बताती हूँ कि उसे क्या हुआ। उसने अभी ही चुदवाया है इसलिये दर्द की वजह से लंगडा रही है।

मैं एकदम पसीने से भीग गया- आपको कैसे पता? यह सब कब हुआ?उसने कहा- मैं जानती हूँ यह सब किसने किया है क्योंकि मेरा मकान दो मंजिला है और उससे दूर तक दिखाई देता है और फिर चौपाल(पंचायत घर) तो बिल्कुल मेरे घर के आगे है। चैपाल की बाउन्डी होने के कारण नीचे से तो कोई नहीं देख सकता था लेकिन दूसरी मंजिल से कमरे के अन्दर खिड़की से सब दिखाई दे रहा था इसलिये मैं तुम्हारा यह अण्डरवियर भी अपने साथ लाई हूँ।

उसने साड़ी के नीचे से छुपाया हुआ मेरा अण्डरवियर निकालकर मेरे सामने रखते हुये कहा।

मैं घबराहट के कारण बुरी तरीके से पसीने से भीग गया था। मैंने उनके सामने लगभग गिड़गिड़ाते हुये कहा- भाभी, किसी से कहना मत ! वरना पता नहीं क्या होगा।

वो हंसने लगी और बोली- अगर किसी को बताना ही होता तो तुम्हारे पास अकेले थोडे ही आती? दो-चार लोगों को साथ लेकर आती।

अब मेरा डर तो कम हो गया था लेकिन घबराहट और बढ़ गई कि पता नहीं अब क्या होने वाला है।

उसने कहा- इसमें शरमाने वाले क्या बात है इस उम्र में तो सभी ऐसा करते हैं और फिर मेरी शादी तो 16 साल की उम्र मे ही हो गई थी।

अब मैं निश्चिंत हो गया कि भाभी किसी से कहने वाली नहीं है वरना अब तक यहाँ इतनी आराम से बैठकर बात नहीं कर रही होती।

मैंने सोचा हो सकता कि अपना कोई काम करवाना चाह रही हो, मैंने उससे खुलते हुये कहा- बताओ आपको क्या चाहिये।

उसने कहा- तुम !

मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गई, जी मैं? मैं आपका मतलब नहीं समझा।

उस समय तक मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि एक पूरी जवान औरत मुझसे यह सब करने के लिये कह सकती है। यह बात नहीं थी कि ऐसा होता नहीं है लेकिन मेरी उम्र करीब 18 साल ही थी और गाँव में मुझसे अच्छे खासे लम्बे-चौड़े मर्द थे जो उस जैसी पूरी जवान औरत के लिये काफी थे। लेकिन उसे मुझमें क्या दिलचस्पी थी, यह मेरी समझ मे नहीं आया। हालांकि मेरा शरीर अच्छा खासा कसरती थी और उम्र से दो साल बड़ा लगता था। लेकिन फिर भी मैं अपने आपको इस लायक नहीं समझता था कि एक तीन बच्चो की माँ को सन्तुष्ट कर पाता, कुंवारी लड़कियों की बात अलग होती है।

यह मेरे लिये एक नया तरह का अनुभव था। मैंने सोचा कि हो सकता है शायद उसका कुछ और मतलब हो मैं बेकार ही डर रहा हूँ इसलिये मैंने मजाक भरे लहजे में फिर पूछा- मेरा आप क्या करोगी? मैं तो एक 18 साल का लड़का हूँ आपके लिये बेकार हूँ।

उसने कहा- काफी हद तक तुम ठीक कह रहे हो, लेकिन तुम्हारे अन्दर एक खास बात है कि तुम इस गाँव के बाहर के लड़के हो और पूरे सम्मानित व्यक्ति हो और हर घर में तुम्हारा आना जाना है। तुम पर कोई शक भी नहीं करेगा और बात फैलने का खतरा भी नहीं है क्योंकि तुम किसी को नहीं बताओगें और अगर तुमने बताने की कोशिश भी की तो तुम्हें ज्यादा नुकसान होगा मुझे नहीं। जबकि गाँव के किसी आदमी के साथ ऐसा करने पर खतरा मुझे ज्यादा है। इसलिये तुम्हें जब भी मैं बुलाऊँ, तुम्हें मेरे घर आना पड़ेगा और मेरे साथ भी वही करना पड़ेगा जो तुम अभी नीतू के साथ कर रहे थे, वरना तुम जानते हो कि मैं क्या करूँगी।

मेरे पास उनकी बात मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था इसलिये मैंने हाँ कह दी। लेकिन मेरा झुका हुआ चेहरा देखकर उन्होने मेरा चेहरा अपने हाथों में उठाया और चूमते हुये बोली- घबराओ मत ! मैं तुम्हें ज्यादा परेशान नहीं करूंगी और कभी किसी तरह की परेशानी हो तो मेरे पास चले आना।

उसकी आखिरी बात मेरी फिर समझ में नहीं आई, मैंने पूछा- कैसी परेशानी?

अरे बुद्धू ! अगर फिर कोई लड़की चोदनी हो तो मेरे घर चले आना ! वरना फिर कोई चौपाल में देख लेगा तो परेशानी हो जायेगी। क्योंकि हर कोई मेरी तरह दिलदार नहीं होता ! और फिर से शैतानी हँसी हँसने लगी।

तभी सामने से मेरी टीम की दो सदस्य आती हुई दिखाई दी तो उन्होने कहा- अब लोग आने लगे हैं इसलिये मैं जा रही हूँ। लेकिन आज रात को तुम घर नहीं जाओगे, आज रात को चौपाल पर ही रूक जाना क्योंकि मौसम खराब है और अन्धेरा जल्दी हो जायेगा। तुम्हारे बारे में सबको पता है कि तुम कभी-कभी गाँव में ही रूक जाते हो। मैं जब भी रात को इशारा करूँ, तुम्हें मेरे घर में आना पड़ेगा। मैंने लाचारी में हाँ करने में ही भलाई समझी।

बच्चों के सो जाने के बाद उस रात उसने मुझसे तीन बार चुदवाया। और जब भी वो मुझसे कहती है मुझे उसे चोदना पड़ता है। क्योंकि मेरे कई राज वो जानती है। लेकिन उसने मुझे कभी भी जरूरत से ज्यादा परेशान नहीं किया और नई-नई लड़कियों को चोदने के लिये वो मुझे अपने घर की दूसरी मंजिल पर एक कमरा भी देती है और पूरा ध्यान रखती कि किसी को कुछ पता न चलने पाये। कई बार उसने कई लड़कियों को मेरे लिये पटाया भी और मुझसे चुदवाया भी। हम दोनों एक दूसरे की जरूरत पूरी करते थे, मैं उसकी और वो मेरी।

दोस्ती का उपहार-3

मैं आपको बता चुका हूँ कि कैसे मैंने अपनी टीम की लड़की को गांव की चौपाल पर चोदा और फिर कैसे चौपाल के पीछे वाले घर में रहने वाली कजरी भाभी ने मुझे छत पर से चुदाई करते देखा और मुझे ब्लैकमेल कर अपनी चूत मरवाई। आज उसी नीतू की बहन गीतू की चुदाई की बारी है।

उस दिन उसकी चूत मारने के बाद मैंने उसे जल्दी घर भेज दिया था क्योंकि उसने पहली बार चूत मरवाई थी और उसकी चूत में काफी दर्द हो रहा था जो धीरे-धीरे बढ़ने वाला था।

उस दिन उसके घर पर कोई नहीं था। वो धीरे-धीरे अपने घर चली तब तक शाम के 5 बज चुके थे। क्योंकि बारिश का मौसम था इसलिये अन्धेरा जल्दी हो गया था। घर में केवल उसकी बहन गीतू थी। उसका नाम गीता था लेकिन सब उसे प्यार से गीतू कहते थे। मुझे नहीं मालूम था कि नीतू गीतू से सारी बातें बताती है। वैसे भी लड़कियाँ अगर हमउम्र हो तो उनके बीच कोई पर्दा नहीं रहता है जबकि लड़कों में ऐसा नहीं होता है।

तो जब वो घर पर पहुँची तो उसे जल्दी घर आया देखकर गीतू उससे बोली- अरे नीतू ! आज तू बहुत जल्दी आ गई? और ये तू लंगड़ाकर क्यो चल रही है?

नीतू झेंपते हुये बोली- कुछ नहीं, बस ऐसी ही पैर मुड़ गया है।

हालांकि वो आपस में काफी खुली हुई थी लेकिन शायद यह बात उसे उस वक्त बताने का सही समय नहीं था। इसलिये उसने उसे वक्त बहाना बनाकर टाल दिया। लेकिन यह बात उससे ज्यादा देर तक छिप नहीं सकी। क्योंकि घर में घुसते ही वो थकान के कारण सो गई लेकिन उसकी चूत से अभी तक खून रिस रहा था और उसकी सलवार पर खून का बड़ा सा थब्बा था जिससे उसकी बहन को शक हो गया था।

उस वक्त तो उसने उससे कुछ नहीं कहा लेकिन रात को दस बजे के करीब उसने उसे प्यार से जगाया और गरम-गरम दूध पिलाया क्योंकि जल्दी सो जाने के कारण उसने खाना भी नहीं खाया था और उसने भी उसे जगाना जरूरी नहीं समझा।

उसने उससे पूछा- नीतू, सच-सच बता क्या हुआ? वरना मैं कल माँ के आने पर सब कुछ बता दूंगी !

हालांकि उसने यह सब केवल उसे डराने के लिये ही कहा था।

उसके बाद नीतू ने उसे सारी बात बता दी कि वो मुझसे चुदवा कर आई है।

लेकिन इतना सुनते ही गीतू आग-बबूला हो गई- दीदी आपने यह क्या कर दिया? सर को तो मैं पसन्द करती हूँ।

और यह सच भी था क्योंकि मैं जब भी उसके घर जाता तो मेरा सारा ध्यान गीतू ही रखती थी लेकिन मैं पागल नीतू के ही चक्कर में लगा रहता था।

तो नीतू ने उससे कहा- अगर तू सर को पसन्द करती है तो मैं उन्हें तेरे लिये जरूर पटाँऊगी।

इसके बाद जब मैंने नीतू से दुबारा चुदवाने के लिये कहा तो वो बहाना बनाकर टाल गई और बोली कि अबकी बार घर पर ही करेंगे क्योंकि अब तक उसकी माँ दुबारा काम करने के लिये वापस आ गई थी और उसका काम करने आना बन्द हो गया।

उसके बाद एक दिन उसकी माँ किसी काम से पास के गांव में गई और बोली- मुझे अगर आते-आते अंधेरा हो गया तो उसी गांव में ही रूक जाऊँगी। तुम लोग चिन्ता मत करना।

इत्तेफाक से मुझे कुछ काम पड़ा तो मैं उनके घर पहुँचा और मैंने आवाज लगाई तो गीतू निकल कर आई और कहने लगी- माँ तो घर पर नहीं है कोई काम हो तो बता दो।

मैंने कहा- कुछ नहीं !

और अपनी मोटरसाईकिल पर बैठकर जाने लगा तो उसने कहा- जब आप घर जाओ तो घर पर होकर जाना नीतू ने कहा है।

मैंने सोचा कि अगर गीतू घर पर है तो क्या काम हो सकता है। उसके सामने चुदवा तो नहीं सकती है।फिर मैंने कुछ सोच कर कह दिया कि मैं अपनी मोटर साईकिल यहीं खड़ी करके जा रहा हूँ वापसी मैं यहीं से होकर जाउँगा।

मैं जब तक लौटा, तब तक रात के आठ बज चुके थे और अन्धेरा हो चुका था।

मैंने घर के दरवाजे पर खड़े होकर कहा- नीतू, मैं मोटर साईकिल लेकर जा रहा हूँ।

तो अचानक नीतू उठकर आई और मुझे अन्दर बुलाने लगी। वैसे तो मैं गांव में इस तरह की हरकत से परहेज करता हूँ इसलिये मैंने दरवाजे पर ही खड़े होकर कहा- क्या बात है? जो भी कहना है, यहीं कह दो। अन्धेरा हो रहा है और अब मेरा रूकना सही नहीं है।

तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा- कम से कम एक मिनट के लिए अन्दर तो चलो।

वो मुझे गैलरी से होती हुई अन्दर वाले कमरे में ले गई। वहाँ एक पंलग पर बिस्तर बिछा हुआ था और उस पर मुझे बिठा दिया।

मैंने कहा- क्या बात है, जल्दी कहो मुझे जाना है।

ऐसी बात नहीं है कि मैं उसे चोदना नहीं चाहता था लेकिन क्योंकि गांव का माहौल था और उसके घर में इस तरह मुझे अजीब सा लग रहा था। दोस्तो, हम इन्हीं छोटी-छोटी गलतियों की वजह से ही हमेशा मार खा जाते है और फंस जाते हैं। इसलिये जब भी किसी लड़की को चोदना हो तो उसे अपने ठिकाने पर ही लाकर चोदना चाहिये ना कि उसके घर पर। इसलिये मैं उसके घर पर रूकना नहीं चाह रहा था क्योंकि वहाँ कभी भी कोई भी आ सकता था।

लेकिन वो मेरी किसी बात का जबाब न देकर मुझे वहाँ बिठाकर चली गई- आप बस एक मिनट रूको, मैं अभी आई।

इतना कहकर वो चली गई और थोड़ी देर बाद एक थाली में मेरे लिये खाना लेकर आ गई।

मैंने उठते हुए जाने की कोशिश करने लगा कि मुझे देर हो जायेगी।

मैंने रात का डिनर हमेशा अपने घर पर ही किया था कभी भी बाहर नहीं किया था अगर कभी दोस्त के साथ पार्टी वगैरह में डिनर करता भी था तो घर जाकर कुछ ना कुछ जरूर खाता और कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल जाता। इसलिये मेरे घरवाले मुझे एकदम शरीफ लड़का समझते थे।

जब मैंने खाना खाने से इनकार किया तो वह ये कहने लगी- मैं जानती हूँ सर कि आप हमारे यहाँ का खाना क्यो नहीं खायेंगे क्योंकि मैं छोटी जात की हूँ।

दोस्तो, मैं जात-पात और ऊँच-नीच को बिल्कुल नहीं मानता और उसने मेरे उसूलों पर चोट की थी शायद वो यह बात जानती थी। इसलिये मैं उसका मन रखने के लिये उसके हाथ का बना खाना खाने के लिये तैयार हो गया।

उसने मेरी मनपसन्द आलू की सब्जी और देसी घी के परांठे बनाये थे जो मैंने बडे शौक से खाये। खाना खाते हुये मैंने उसके हाथ की खाने की बहुत तारीफ की। दोस्तो मैं खाने-पीने का बड़ा ही शौकीन हूँ और अपने शरीर और काम(गाव में घूमने) के हिसाब से मुझे भूख भी काफी लगती थी।

तभी उसने बताया- खाना मैंने नहीं, मेरी बहन गीतू ने बनाया है।

और गीतू को बुलाकर कहने लगी- तू अपने सर को अपने सामने बैठकर खाना खिला।

दोस्तो, अगर आपने कभी गाँव में खाना खाया है तो आपको जरूर पता होगा कि गांव के लोग आपको प्यार से एक दो रोटी ज्यादा ही खिलायेगें। यह मेरे साथ भी हुआ उन्होंने मुझे जबरदस्ती करके दो पराठें ज्यादा ही खिला दिये और पता नहीं उन देसी घी के बने पराठों की बात थी या कुछ और मैं जैसे-जैसे परांठे खाता जा रहा था मुझ पर नींद हावी होती जा रही थी। और कुछ ही देर बाद मैं वहीं सो गया।

नींद में मुझे अपने शरीर पर किसी की हरकत महसूस हुई तो मेरी नींद खुली। मैंने चौंक कर देखा तो कोई मेरे सामने खड़ा हुआ है। लेकिन मैं रोशनी कम होने के कारण उसे ठीक से पहचान नहीं सका, बस इतना ही पता कर पाया कि वो कोई लड़की है। क्योंकि उसकी चूचियाँ उसके सूट पर से उठी हुई दिखाई दे रही थी।

तभी मुझे याद आया कि मैंने अपना मोबाईल पास ही स्टूल पर रखा था जो कि अभी भी वहीं था। मैंने फोरन उसमें समय देखा तो 11.00 बज रहे थे। तभी मुझे एहसास हुआ कि यह मेरा घर नहीं है। तभी मेरी आंखें खुली की खुली रह गई कि मेरे शरीर पर कोई कपड़ा नहीं है।

अचानक मुझे सारी बातें याद आती चली गई कि मैं तो नीतू के घर पर खाना खा रहा था और अपने घर तो अभी तक गया ही नहीं। मैंने जैसे ही उठने की कोशिश की तभी अचानक वहाँ गीतू आ गई और बोली- सर, आप नहीं जा सकते। बहुत मन्नतों के बाद तो मुझे यह मौका मिला है, मैं आपको इतनी आसानी से कैसे जाने दे सकती हूँ।

एक तो मेरे शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था और दूसरी बात कि मैंने कभी गीतू को इस नजर से नहीं देखा था इसलिये इस वक्त मुझे उत्तेजना के स्थान पर गुस्सा आ रहा था। मैंने तुरन्त पास पड़ी चादर उठाकर अपने नंगे शरीर को ढक लिया। मैंने उसे समझाया कि यह सब करना ठीक नहीं है। इस वक्त मुझे नीतू पर भी गुस्सा आ रहा था कि वो इस वक्त कहाँ मर गई। मुझे लगा कि यह सब नीतू ने किया है और शायद गीतू गलती से यहाँ आ गई है।

लेकिन नीतू इस वक्त है कहाँ।

तभी नीतू भी खम्बे के पीछे से निकल कर आ गई और बोली- सर, गीतू आपको मुझसे भी ज्यादा चाहती है और आपसे शादी करना चाहती है। मेरा प्यार तो मौके की नजाकत था लेकिन यह आपको सच्चा प्यार करती है। प्लीज इसकी बात मान लीजिये।

अब मुझे सब कुछ समझ में आ चुका था और मेरा इस बारे में नीतू को पता लगने का डर भी खत्म हो चुका था। क्योंकि नीतू खुद ही ये सब कुछ करवा रही थी।

तभी गीतू मेरे पास आई और कहने लगी- सर, हाँ कह दीजिये ना सर। मैं आपसे फिर कभी कुछ नहीं मांगूगी।आखिर मैं भी एक मर्द हूँ और मेरा दिल भी एकदम कोमल है जो किसी को रोते हुये नहीं देख सकता। इसलिये मैंने हाँ कह दी लेकिन एक शर्त रख दी कि नीतू भी पहले की तरह मुझसे चुदवाती रहेगी। लेकिन नीतू यह कहकर बाहर चली गई कि आज की रात आप गीतू के हैं और दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया।

अब मैं एक दम आजाद था और गीतू मेरे पास मेरे बिस्तर पर आकर लेट गई और मुझे चूमने लगी। इतनी देर में मैं भी गर्म हो चुका था और मैं भी उसके होठों को चूसने लगा। फिर मैंने भी उठकर उसका कमीज़ उतार दिया और फिर सलवार भी उतार दी। वो अभी तक ब्रा नहीं पहनती थी। उसकी चूचियाँ नीम्बू के आकार की एकदम गोल-गोल और सख्त थी जो देखने में बडी ही प्यारी लग रही थी। मैंने उसे नीचे लिटाया और एक हाथ से उसकी एक चूची दबाने लगा और उसकी दूसरी चूची मुँह लगाकर पीने लगा।

वो एकदम गर्म हो गई और उत्तेजना मुझे अपने आपसे से एकदम कस कर चिपका लिया। मैंने उसकी चूत पर हाथ लगाया तो उसकी पेंन्टी एकदम गीली हो चुकी थी। मैंने उसकी पेन्टी उतारी और पूरी तरह तन्नाया हुआ अपना मोटा लण्ड उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मैंने उसकी चूत के छेद पर अपना लण्ड को टिकाया और एक जोर का झटका मारा। लेकिन लण्ड उसकी चूत को फाड़ने की बजाय ऊपर की ओर सरक गया। मैंने अबकी बार दोबारा धीरे-धीरे कोशिश की लेकिन लण्ड उसकी चूत में जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। क्योंकि उसकी चूत बहुत छोटी थी और उसने आज तक उसमें एक अंगुली भी नहीं डाली थी।

उसने मेरी ओर सवालिया नजरों से देखा कि क्या हुआ। तभी मेरी नजर सामने रखी सरसों के तेल की बोतल पर गई। मैं उठा और तेल उठाकर ले आया। मैंने अपने लण्ड पर तेल लगाया, पलंग के पास खड़े होकर उसकी टांगें पकड़ कर उसे किनारे की ओर खींचा और उसकी गांड के नीचे तकिया रखकर उसकी चूत को ऊपर की ओर उठा दिया जिससे उसकी चूत एकदम खुल कर आगे की ओर हो गई। मैंने उसकी दोनों टांगें उठाकर अपने कन्धों पर रखी और लण्ड को उसकी चूत के छेद पर टिकाया और अपने लण्ड के टोपे को थोड़ा सा उसकी चूत के अन्दर की ओर घुसाया।

जैसे ही थोड़ा सा सुपारा उसकी चूत के अन्दर गया, उसे हल्के से दर्द का अहसास हुआ। लेकिन उस वक्त तो जैसे वह नशे में चूर थी। उसने इसकी कोई परवाह नहीं की।मैंने उसकी कमर को पकड़ कर एक जोर का झटका मारा तो दो इंच के करीब लण्ड उसकी चूत में चला गया। उसने एकदम चीखने की कोशिश की लेकिन उसके गले से कोई आवाज नहीं निकली। एक बार तो मुझे ऐसा जैसे उसकी सांस ही अटक गई हो। मैं कुछ देर के लिये घबरा कर रूक गया और उसका मुँह एक हाथ से हल्के से दबा लिया जिससे अगर उसकी चीख निकले तो मैं उसे रोक सकूँ। मैंने धीरे-धीरे उसकी एक चूची को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। उसे कुछ देर बार राहत मिली तो मैंने उससे पूछा- क्या ज्यादा दर्द हो रहा है?

तो उसने कहा- ऐसा लगा जैसे मेरी टांगें किसी ने चीर दी हों।

मैंने उसे नहीं बताया कि अभी तो केवल एक चौथाई ही लण्ड अन्दर गया है, वरना शायद वो चुदवाने से ही मना करने लगती।

मैंने उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया। जब मैं पूरी तरह निश्चिंत हो गया कि अब मामला ठीक है तो मैंने कस कर एक झटका और मारा। मेरा आधा लण्ड उसकी चूत में समा गया। उसने अपनी कमर को इधर-उधर झटके देने शुरू कर दियें। मैंने देर ना करते हुये दो-तीन जोर के झटके और मारे और पूरा सात इंच का लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया। वो एकदम तड़प कर रह गई और पूरी ताकत से चीखने की कोशिश की लेकिन उसकी चीख उसके मुँह से बाहर नहीं आ सकी। शायद थोड़ी देर के लिय वह बेहोश भी हो गई। क्योंकि 4-5 मिनट तक उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई।

मैंने कुछ देर रूककर उसकी चूत में हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिये। कुछ देर बाद उसने अपनी आँखें खोली और और मेरी ओर देखने लगी।

मैंने उससे पूछा- अब कैसा लग रहा है? दर्द कुछ कम हुआ या अभी भी उतना ही है?

कम तो नहीं हुआ है, लेकिन कुछ अजीब सी गुदगुदी हो रही है।

मैं समझ गया कि उसे भी मजा आना शुरू हो गया है और मैंने धक्कों की स्पीड और तेज कर दी। करीब 15 मिनट तक उसे चोदने के बाद मैं भी झड़ गया। इस बीच वो तीन बार झड चुकी थी। उसकी चूत से उसका पानी, मेरा वीर्य और उसकी चूत का खून तीनों मिलकर चू रहे थे। इतना पानी तो मैंने भी पहली बार किसी चूत से गिरता हुआ देखा था।

उस रात मैंने उसे कम से कम 5 बार चोदा ही होगा। क्योंकि जब भी मेरी नींद खुलती, मैं उसकी चुदाई करने लग जाता। उस दिन सचमुच मेरी सुहागरात ही थी। अगले दिन उसे बुखार आ गया और मुझे उसे लेडी डाक्टर के पास ले जाना पड़ा। वहाँ जाकर मुझे डाक्टर ने बताया कि ज्यादा चुदाई की वजह से उसकी चूत में सूजन आ गई है, ठीक होने मे दो-तीन दिन लगेंगे।

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